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अहिल्याबाई होलकर: सैन्य शिक्षा में नारी शक्ति की प्रेरणा

पुण्यश्लोक लोकमाता अहिल्याबाई होलकर की 300वीं जयंती पर उन्हें केवल एक आदर्श प्रशासक और धर्मसेवी शासक के रूप में नहीं, बल्कि एक सैन्य रणनीतिकार और महिला सशक्तिकरण की अग्रदूत के रूप में भी याद किया जाना चाहिए। वे न सिर्फ मंदिर, घाट और तालाब बनवाने वाली आदर्श रानी थीं, बल्कि अपने राज्य की रक्षा के लिए महिलाओं को आत्मरक्षा और युद्धकला में प्रशिक्षित करने वाली दूरदर्शी शासिका भी थीं।

अहिल्याबाई ने 1767 से 1795 तक मालवा पर शासन किया। पति खांडेराव और ससुर मल्हारराव की मृत्यु के बाद वे सत्ता में आईं और प्रशासन, न्याय और सामाजिक सुधारों के साथ महिलाओं की सैन्य भागीदारी की भी आधारशिला रखी। उस दौर में मालवा बार-बार युद्धों से प्रभावित था – मराठा-पठान संघर्ष, मराठा-मुगल झड़पें, और स्थानीय विद्रोह। इन परिस्थितियों में अहिल्याबाई ने महिलाओं को तलवारबाजी, घुड़सवारी और भाला संचालन जैसे युद्धकौशल सिखाने के लिए शिविर लगाए।

मालवा की लोककथाएं और मराठी बाखरों में इन प्रयासों के उल्लेख मिलते हैं। नाथमाधव और के. ए. केलुसकर जैसे इतिहासकारों ने भी उनके शासन की सैन्य नीतियों में महिलाओं की भागीदारी का उल्लेख किया है। यह परंपरा जीजाबाई और ताराबाई से प्रेरित थी, जिसे अहिल्याबाई ने आगे बढ़ाया।

मध्य भारत की भूमि रानी दुर्गावती, रानी अवंतीबाई और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई जैसी वीरांगनाओं की गाथाओं से समृद्ध रही है। गोंड रानी कमलापति का भी युद्धक नेतृत्व 17वीं सदी में चर्चित रहा। आज स्वतंत्र भारत में महिलाओं की सैन्य भागीदारी लगातार बढ़ रही है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2015 में पहली बार वायुसेना में महिला फाइटर पायलट की शुरुआत हुई। 2019 में भावना कंठ पहली महिला बनीं जिन्होंने फाइटर मिशन में योग्यता पाई। 2023 में ग्रुप कैप्टन शालिजा धामी ने फ्रंटलाइन यूनिट की कमान संभाली। 2021 में NDA के द्वार महिलाओं के लिए खुले, 2022 में नौसेना में पहली बार 273 महिला नाविक बनीं, और 2024 में 153 महिला अग्निवीर भारतीय वायुसेना में शामिल हुईं।

ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के समय सेना की ओर से जब अधिकारी सोफिया कुरैशी और व्योमिका सिंह मीडिया के सामने आईं, तो पूरा देश गर्व से भर उठा। उनकी उपस्थिति ने साबित कर दिया कि आज की भारतीय सेना में न महिला होने की कोई बाधा है, न अस्वीकार्यता।

मध्यप्रदेश सरकार ने भी 2018 में पुलिस भर्ती में महिलाओं को 33% आरक्षण देकर पहल की, जिसे 2024 में बढ़ाकर 35% कर दिया गया। यह बदलाव केवल आंकड़ों में वृद्धि नहीं है, बल्कि महिलाओं को आत्मविश्वासी, जागरूक और सक्षम नागरिक बनाने की दिशा में बड़ा कदम है।

आज जब भारत सैन्य रूप से आत्मनिर्भर और वैश्विक मंच पर शक्तिशाली भूमिका में है, तब महिलाओं की रक्षा और सैन्य क्षेत्र में भागीदारी केवल समानता का प्रश्न नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा का भी अनिवार्य पहलू है। अहिल्याबाई जैसी ऐतिहासिक प्रेरणाओं से सीख लेकर हमें महिलाओं के सैन्य प्रशिक्षण को गति देनी चाहिए। इससे न केवल देश की सुरक्षा मजबूत होगी, बल्कि समाज में स्त्री की भूमिका को नया गौरव भी मिलेगा।

महिलाओं की सैन्य शक्ति, भारत की आत्मशक्ति है — यही अहिल्याबाई की सच्ची प्रेरणा है ।

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