देश स्वतंत्रता की 75वी वर्षगांठ मना रहा है। अमृत महोत्सव की बेला पर भारत छोड़ो आंदोलन के प्रसंग में तथ्यों को उकेरना समय की जरूरत है। ये अवसर आजादी के संघर्ष और संघर्ष के उन मूल्यों को स्मरण कर भारत के पुनर्निर्माण में गतिमान होना का है। कांग्रेस इस अमूल्य विरासत को सहेज और संवार कर नई पीढ़ी से साँझा करने की बजाय भारत छोडो आंदोलन के द्रोही वामपंथियों की शकुनि बुद्धि से संचालित हो रही है। काँग्रेस ने नेहरू वंश के अलावा तमाम महापुरुषों और क्रांतिकारियों के साथ अपमानजनक भेदभावपूर्ण व्यवहार किया। आजादी के इतिहास के साथ छेड़छाड़ की।
आजादी के आंदोलन में लाखों अनाम ऐसे लोग थे,जो न अपना नाम इतिहास के पन्नो पर, न पत्थरों पर उकेरना चाहते थे। इसी भावना के साथ 1925 में जन्मे संघ के स्वयंसेवक कल भी थे, आज भी हैं। ब्रिटिश सरकार के गुप्तचर विभाग ने 1943 के अंत में संघ के विषय में जो रपट प्रस्तुत की, वह राष्ट्रीय अभिलेखागार की फाइलों में सुरक्षित है। जिसमें सिद्ध किया है कि संघ योजना पूर्वक स्वतंत्रता प्राप्ति की ओर बढ़ा।
चतुर्थ संघचालक पूज्य रज्जु भैया जी ने भारत छोड़ो आंदोलन में प्रयाग में आंदोलन किया था। संघ द्वारा 1942 के आंदोलन में माननीय दतोपन्त ठेंगड़ी जी सहित अनेको प्रमुख संघ नेताओ को आंदोलन के लिये भेजा गया था।
दरअसल आजादी के बाद लगातार बौद्धिक दिवालिया कांग्रेस को वामपंथियों ने गोद ले लिया और न केवल इतिहास से छेड़छाड़ की बल्कि देशज विचार व् सांस्कृतिक विरासत को भुलाया गया। महापुरुषों के साथ भेदभाव किया गया। इन वामपंथियों के मार्ग पर कांग्रेसी गौरव करने लगे।
वामपंथियों ने सुभाषचंद्र बोस के लिए ”तोजो का कुत्ता”जैसे शब्द इस्तेमाल किए थे. क्योंकि नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज के लिए जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री तोजो की सहायता ली थी. भगत सिंह को आतंकवादी, शिवाजी को पहाड़ी चूहा बताने वाले आजादी के बाद भी वामपंथी लेखकों को कांग्रेस सरकारें पढ़ाती रहीं। साथ ही साथ इतिहास इस बात का गवाह है कि कम्युनिस्टों ने 1942 के भारत-छोड़ो आंदोलन के समय अंग्रेजों का साथ देते हुए देशवासियों के साथ विश्वासघात किया था. तब वामपंथी और लाल सलाम वालों को गुलाम देश अच्छा लग रहा था. गांधी जी और सुभाष जी देश की आजादी के लिए लड़ रहे थे वहीँ यह लोग अंग्रेजों का साथ दे रहे थे.


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